रावतसर दुर्ग में 19 राजाओं ने राज किया, लगभग 434 साल से राज परिवार ही कर रहा संभाल, 270 साल से निकल रही गणगौर की सवा
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रावतसर दुर्ग में 19 राजाओं ने राज किया, लगभग 434 साल से राज परिवार ही कर रहा संभाल, 270 साल से निकल रही गणगौर की सवारी
प्रदेश के कई जिलों की हनुमानगढ़ जिले के शहर रावतसर में भी दुर्ग है, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि इसकी सार-संभाल आज भी राजा-महाराजा की पीढ़ियों के लोग ही कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि रावतसर शहर में यह दुर्ग लगभग 434 साल पहले बना था और आज भी यह सिलसिला जारी है। यही कारण है कि रावतसर के वार्ड आठ में यह ऐतिहासिक दुर्ग जिले के इतिहास और वैभव की गाथा बताता है। यह दुर्ग राजा विजयसिंह ने 17वीं शताब्दी में बनवाया था। इससे पहले रावत राधोदास ने 1584 में यहां चूने का गढ़ बनवाया था। उसके बाद से लेकर अब तक 19 राजाओं ने यहां राज किया। खास बात ये है कि अब भी इसकी देखभाल करने के लिए राजा-महाराजाओं के वशंज हर दो साल बाद यहां आते हैं और कई दिन यहां रुकते हैं। इस दुर्ग के पहले शासक रावत राधोदास थे और अंतिम रावत तेजसिंह थे। इसके बाद अब राजा तेजसिंह के बेटे बलभद्रसिंह राठौड़ (सेवानिवृत्त आईपीएस) इसकी देखभाल करते हैं। खास बात ये भी है कि 270 सालों से इस दुर्ग से गणगौर की शाही सवारी निकाली जा रही है। सबसे बड़ी बात ये है कि सबसे पुराने भटनेर किले की देखरेख भी रावतसर के शासकों ने की थी। यह दुर्ग करीब 12 बीघा में फैला है। फिलहाल इसकी देखभाल का जिम्मा गुरुचरण सिंह कामगार को दे रखा है।
दुर्ग में बना है पूर्व प्रधानमंत्री वीपीसिंह का संग्रहालय... विदेशों में मिले कीमती उपहार बढ़ा रहे इसकी शान
रावतसर के दुर्ग में बने संग्रहालय में पूर्व प्रधानमंत्री वीपीसिंह की लगी प्रतिमा।
संग्रहालय में रखी गई ये वे घरेलू वस्तुएं हैं, जो पूर्व प्रधानमंत्री वीपीसिंह को उपहार में मिली थीं। सभी इसी संग्रहालय में रखी हैं।
परंपरा...आज भी गाजे-बाजे से निकलती है सवारी
इस दुर्ग की एक खासियत ये भी है कि स्थापना से लेकर अब तक यहां से गणगौर की बड़ी सवारी गाजे-बाजे के साथ निकलती है। जिसे 270 साल हो चुके हैं, जो अब भी जारी है। इसमें पूरा रावतसर कस्बा और महाराजा के वशंज शिरकत करते हैं।
वीपीसिंह जब प्रधानमंत्री थे, तब यह नाव उपहार स्वरूप उन्हें विदेशी दौरे में मिली थी। लोग इस नाव के साथ खूब फोटो खिंचाते हैं।
इस वंश की बहू रानी लक्ष्मीकुमार चुड़ावत, जो अंतिम शासक रावत तेजसिंह की पीढ़ी भी यह दुर्ग खास पहचान रखता है। वह विधानसभा अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष और राज्य सभा सदस्य रही हैं। राजघराने की पहली ऐसी महिला थी जो राजस्थानी की प्रख्यात साहित्यकार के रूप में जानी जाती थी
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इस दुर्ग की एक खासियत ये भी है कि स्थापना से लेकर अब तक यहां से गणगौर की बड़ी सवारी गाजे-बाजे के साथ निकलती है। जिसे 270 साल हो चुके हैं, जो अब भी जारी है। इसमें पूरा रावतसर कस्बा और महाराजा के वशंज शिरकत करते हैं।
वीपीसिंह जब प्रधानमंत्री थे, तब यह नाव उपहार स्वरूप उन्हें विदेशी दौरे में मिली थी। लोग इस नाव के साथ खूब फोटो खिंचाते हैं।
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